नामकरण संस्कार हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा है जो एक नवजात शिशु को उसका पहला नाम देने के लिए किया जाता है। यह संस्कार सामान्य रूप से नौवें दिन या इससे भी बाद किया जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर इसे नौवें दिन के बाद ही किया जाता है।
नामकरण संस्कार में बच्चे के नाम का चयन किया जाता है और उसे उपनयन वेदी या वेदिक मंदिर में आयोजित पूजा और अग्नि कुंड में हवन के साथ दिया जाता है। इस पूजा में विभिन्न वेदिक मन्त्रों और स्तोत्रों का पाठ किया जाता है जो शिशु के नाम की महत्वपूर्णता और उसके जीवन में शुभता को प्रकट करते हैं।
नामकरण संस्कार में परिवार और दोस्त और आशीर्वादी आते हैं और वे बच्चे के जीवन की शुभकामनाएँ देते हैं। यह संस्कार नए जन्मे बच्चे के आदर्शों, कुल-परंपराओं और परिवार के आचरणों का एक हिस्सा होता है और बच्चे को समाज में एक पहचान देने में मदद करता है।
नामकरण संस्कार भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण होता है और यह परिवार की परंपरा और मूल्यों को दर्शाता है। यह शिशु के जीवन का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होता है जिससे उसके जीवन की शुभ शुरुआत होती है।
नोट : पंडित जी की आकाशीय वृत्ती होती है इसको ध्यान में रखते हुए पूजा बुकिंग करते समय यह ध्यान दें पूजा बुक होने के पश्चात किसी भी प्रकार का कोई रिफंड नहीं किया जाएगा
यह सभी पूजा बुकिंग की निर्धारित दक्षिणा केवल वाराणसी मे मान्य है अन्यत्र शहर मे पूजा बुकिंग हेतु दक्षिणा बढ़ जाएगी |