कालसर्प दोष पूजा एक हिन्दू धार्मिक प्रथा है जो विशेष रूप से नाग दोष या कालसर्प योग के कारण जातकों के जीवन में अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए की जाती है। कालसर्प दोष ज्योतिष शास्त्र में मान्यता प्राप्त है और इसका मतलब होता है कि जन्मकुंडली में राहु और केतु ग्रह एक कुंडली में साथ होते हैं और वे सर्प के रूप में प्रकट होते हैं।
कालसर्प दोष पूजा की प्रक्रिया में निम्नलिखित तरीके का पालन किया जा सकता है:
- पूजा स्थल की तैयारी: एक शुद्ध और पवित्र स्थल को पूजा के लिए तैयार करें।
- दीप पूजा: पूजा की शुरुआत दीप पूजा से करें, जिसमें दीपकों की पूजा की जाती है।
- राहु-केतु पूजा: राहु और केतु की मूर्तियों की स्थापना करें और उनकी पूजा करें।
- अष्टनाग पूजा: अष्टनाग, यानी आठ सर्पों की पूजा करें। यह सर्पों की पूजा की विशेष प्रक्रिया होती है।
- मंत्र पाठ और जाप: राहु और केतु के बीज मंत्रों का पाठ करें और उनका जाप करें।
- हवन: यज्ञकुंड में हवन करें और मंत्रों का जाप करें, जो कालसर्प दोष पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं।
- प्रार्थना और आरती: पूजा के अंत में राहु और केतु की प्राप्ति और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करें और आरती करें।
- धन्यवाद और दान: पूजा के बाद यदि संभावना हो, तो पंडित या आचार्य को धन्यवाद दें और दान करें।
कालसर्प दोष पूजा की प्रक्रिया में विशेष धार्मिक नियमों और परंपराओं का पालन करना महत्वपूर्ण होता है। आपकी स्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर स्थानीय पंडित या आचार्य से सलाह लेना उचित होगा